पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१७०

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( १३६ ) ८८. हम इन प्रजातंत्रों का शासन-प्रणालो की दृष्टि से विचार कर चुके हैं। पर हम यह नहीं चाहते कि प्रजातंत्री राजनीति के इस प्रकरण को हम उनकी इन प्रजातंत्रों की साधारण सभ्यता या उन्नति के संबंध सभ्यता और उन्नति की थोड़ी सी बाते बतलाए बिना ही समाप्त कर दें। फिलास्ट्रेटस ने टयाना के एप्पोलोनियस की जो जीवनी ( Life of A.ppollonius of Tyana) लिखी है, उसमे उसने यह सूचित किया है कि सिकंदर के समय के जो सोफोई ( Sophoi ) या विद्वान थे, वे एप्पोलोनियस के समय मे (लगभग ई० पू० ४०) दार्शनिक तो नही पर दर्शन- शास्त्र में चंचु-प्रवेश करनेवालं समझे जाते थे। परंतु जान पड़ता है कि सिकंदर के समय मे क्षुद्रक लोग अपने दार्शनिक ज्ञान के लिये प्रसिद्ध थे और वे बुद्धिमान कहे जाते थे। इसी प्रकार भारतीय साहित्य में कठ लोग अपने उपनिषदो और वेदों के ज्ञान के लिये प्रसिद्ध थे। वे लोग कृष्ण यजुर्वेद के अनुयायी थे, और उनका वेदों का जो संस्करण था, वह हम लोगों में अब तक काठक संहिता के नाम से चला आता है। पतंजलि के समय मे कठ लोगों का पाठ परम शुद्ध और बिल- कुल ठीक माना जाता था। जैसा कि पतंजलि ने अपने महाभाष्य मे कहा है, प्रत्येक नगर में उन्हीं का निर्धारित पाठ होता था। उनका कठक धर्मसूत्र नामक धर्मशास्त्र भी

- पाणिनि पर महाभाष्य, ४. ३. १०१.