पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९८

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ग्यारहवाँ प्रकरण हिंदू प्रजातंत्रों की कार्य प्रणाली ६१०४. इन प्रजातंत्रों के और समीप पहुँचने पर इनके संबंध में और अधिक भीतरी बातें जानने के लिये हमें इनकी कार्य-प्रणाली आदि का ज्ञान प्राप्त करने का उद्योग करना चाहिए। यदि भूत काल का व्यवधान इतना अधिक भारी हो कि उठाया ही न जा सके, तो हमें अप्रत्यक्ष रूप से ही उसके दर्शन करके संतुष्ट हो जाना चाहिए। बौद्ध सूत्रों तथा पहले आए हुए उल्लेखों और उद्धरणों आदि से हमें पता चलता है कि राज्य या शासन-संबंधी विषयों पर हमारे प्रजातंत्रों में समूह के सामने विचार हुआ करता था। इस प्रकार के विचारों और निर्णयों आदि के पारिभाषिक या कार्य-संबंधी स्वरूप का हमें केवल एक ही प्रत्यक्ष उल्लेख मिलता है। परंतु वह एक उल्लेख सबसे अधिक महत्व का है, क्योंकि वह हमें बिलकुल ठीक मार्ग पर पहुँचा देता है। शाक्यों की राजधानी पर कोशल के राजा ने घेरा डाला था। इस बात का उल्लेख मिलता है कि जिस समय आत्मसमर्पण करने के प्रश्न पर विचार हो रहा था, उस समय मतभेद उपस्थित हो गया था। अतः शाक्यों ने यह निश्चित किया कि पहले 3