पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९९

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(१६८) वहुमत का पता लगाना चाहिए-यह जानना चाहिए कि बहु- सत किस पक्ष में है। अतः इस विषय पर सब लोगों के मत लिए गए थे। उस समय हुआ यह कि- "राजा ने शाक्यों के पास एक दूत भेजकर कहलाया- महाशयो, यद्यपि आप लोगों के प्रति मुझमें कोई अनुराग नहीं है, तथापि आप लोगों के प्रति कोई विराग अथवा घृया का भाव भी नहीं है। अब सब कुछ हो चुका है, इसलिये आप लोग तुरंत अपने द्वार खोल दें। इस पर शाक्यों ने कहा-हम सब लोगों को एकत्र होने दीजिए और इस बात का विचार कर लेने दीजिए कि क्या द्वार खोल देना चाहिए। जब वे सब लोग एकत्र हुए, तब कुछ लोगों ने कहा कि द्वार खोल देना चाहिए; और कुछ लोगों की सम्मति यह हुई कि द्वार नहीं खोलना चाहिए। कुछ लोगों ने कहा कि इस संबंध में कई प्रकार के मत हैं; इसलिये हमें यह जानना चाहिए कि अधिक लोगों का क्या मत है। इसलिये उन लोगों ने इस विषय पर मत देना प्रारंभ किया *" अंत में अधिक लोगों की सम्मति यही हुई कि कुछ शतों पर आत्मसमर्पण करने का जो प्रस्ताव है, वही ठीक है; और तब नगरवालों ने आत्मसमर्पण कर दिया। परंतु मत-संग्रह और बहुमत जानने की प्रणाली का अधिक विस्तृत विवरण हमें कहाँ से मिल सकता है ? हम यह बात पहले ही बतला चुके राहिल कृत The Life of the Buddha पृ० ११८-६.