पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२००

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(१६६) हैं कि बौद्ध संघ वास्तव में राजनीतिक संघ के अनुकरण पर ही बना था। हम यह भी बतला चुके हैं कि स्वयं बुद्ध भगवान् ने लोगों के पथ-प्रदर्शन के लिये कहा था कि मत-संग्रह उसी प्रकार किया जाय, जिस प्रकार गण मे किया जाता है। अतः यदि राजनीतिक अथवा धार्मिक दोनों में से किसी एक संघ की कार्य-प्रणाली हमें विदित हो जाय, तो मानों हमें एक ऐसा चित्र मिल जायगा जिसमें प्रायः दोनों की ही अनेक बातें समान रूप से होंगी। ये दोनों ही संघ समकालीन थे; और साधारणतः इन सार्वजनिक समूहो की कार्य-प्रणाली की सब बातें भी दोनों में प्रायः समान ही होगी। परंतु बौद्ध संघ के विषय में हम यह बात जानते हैं कि उसका मुख्य आधार क्या है; और यह भी स्पष्ट है कि उसकी रचना राजनीतिक संघ के अनुकरण पर हुई थी। अतः यह बात भी निर्विवाद है कि बौद्ध संघ की कार्य-प्रणाली अपने जनक प्रजातंत्री संघ की कार्य-प्रणाली से बहुत कुछ मिलती जुलती ही होगी। धार्मिक आवश्यकताओं को देखते हुए उसमें जो परिवर्तन या सुधार हुए थे, यदि उन सुधारों को हम उसमे से निकाल लें या अलग कर दें, तो हम वह स्वरूप प्रस्तुत कर सकते हैं जो दोनों में समान ही था। इस कार्य के लिये हम यहाँ पर धार्मिक संघ की कार्य-प्रणाली दे देते हैं, जिसके स्वयं नियमों से ही विदित हो जायगा कि जिस समय महात्मा बुद्ध ने धर्म में उन नियमों का प्रवेश किया था, उससे पहले ही तत्संबंधी शब्दों और कार्य-