पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रासन ( १७०) प्रणालियों आदि ने एक निश्चित और पारिभाषिक स्वरूप प्राप्त कर लिया था। इसी से हमें विस्तृत रूप से यह बात मालूम हो जायगी कि मत किस प्रकार दिया जाता था और बहुमत किस प्रकार जाना जाता था। ६१०४. जिन सदस्यों को उपस्थित होने का अधिकार प्राप्त होता था, वे सब उस समूह में आसनों पर आकर बैठते थे और वे सब प्रासन इसी कार्य के लिये नियुक्त एक विशिष्ट अधिकारी के आज्ञा- नुसार लगाए जाते थे। "एक समय की बात है कि अजित नाम का एक भिक्खु, जिसे प्रव्रज्या ग्रहण किए दस वर्ष हो गए थे, संघ के सामने पातिमोक्व का पाठ किया करता था। संघ ने थेर भिक्खुओं के आसनों की व्यवस्था करने के लिये उसी को आसन- पण्यापक (आसनप्रज्ञापक) नियुक्त किया ।" ६१०५. जब किसी विषय पर विचार होने को होता था, तब तत्संबंधी प्रज्ञप्ति या सूचना इस प्रकार सब के सामने उपस्थित की जाती थी-"आदरणीय संघ ज्ञप्ति मेरी बात सुने। यदि संघ को समय मिले तो संघ अमुक कार्य करे।.... यह बत्ति (अर्थात् ज्ञप्ति, या सूचना) है।" इस ज्ञप्ति के उपरांत जो ज्ञापक होता था, वह वैशाली के संघ का विवरण। चुल्लवग्ग १२ २. ७.(विनय पिटक S. B.E. २०, ४०८.)