पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१७१) अपने विषय का प्रस्ताव, जिसे उस समय प्रतिज्ञा कहते थे, संघ के सामने स्वीकृत होने के लिये उपस्थित करता था। कह दिया जाता था कि जो लोग इस प्रस्ताव या प्रतिज्ञा के पक्ष में हों, जिन्हें यह प्रतिज्ञा स्वीकृत हो, वे लोग मौन रहे; और जिन्हे यह स्वीकृत न हो, वे लोग बोलें। कुछ अवस्थाओं मे प्रतिज्ञा तीन बार पढ़कर सुनाई जाती थी; और तब यदि उप- स्थित समूह के सब लोग मौन रहते थे, तो कह दिया जाता था कि यह प्रतिज्ञा स्वीकृत हो गई। और तब जिस दल का उस प्रतिज्ञा के साथ संबंध होता था, उस दल को नियमानुसार प्रतिज्ञा की सूचना दे दी जाती थी। उक्त विवरण को और अधिक स्पष्ट करने के लिये हम यहाँ विनय पिटक से कुछ उदाहरण दे देते हैं। नीचे लिखी प्रतिज्ञा स्वय' बुद्ध भगवान् ने सब लोगों के सामने उपस्थित की थी- "आदरणीय संघ श्रवण करे। इस उवाल भिक्खु का एक अपराध के संबंध में संघ के समक्ष विचार हुआ था। इसने एक बार अपराध अस्वीकृत करने के उपरांत उसे स्वीकृत किया है; और स्वीकृत करने के उपरांत फिर अस्वीकृत किया है। उलटे यह वादी पर अपराध लगाता है और जान बूझकर झूठ बोलता है। यदि संघ को अवकाश मिले तो संघ भिक्खु उवाल के विरुद्ध 'तस्स पापिय्यसिका' कर्म स्वीकृत करे। यही ज्ञप्ति है।