पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२०३

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5 ( १७२) "आदरणीय संघ श्रवण करे। इस उवाल भिक्खु का (आदि आदि जैसा कि पहले कहा था)। संघ उबाल भिक्खु के विरुद्ध 'तस्स पापिय्यसिका' कर्म स्वीकृत करता है। जो आदर- णीय भिक्खु लोग उवाल भिक्खु के विरुद्ध तस्स पापिय्यसिका कर्म स्वीकृत करने के पक्ष में हों, वे मौन रहें। जो उसके पक्ष में न हों, वे बोले। "फिर दूसरी बार मैं वही बात कहता हूँ। 'इस उवाल भिक्खु का' (श्रादि आदि जैसा कि पहले कहा था) 'वह बोले। "फिर तीसरी बार मैं वही बात कहता हूँ (आदि आदि जैसा कि पहले कहा था) 'वह बोले । "उवाल भिक्खु के विरुद्ध संघ ने तस्स पापिय्यसिका कर्म स्वीकृत कर लिया है। इसी लिये वह मौन है। इससे यही बात मैं समझता हूँ ।" 'इसके उपरांत संघ ने उवाल भिक्खु के विरुद्ध तस्स पापिय्यसिका कर्म स्वीकृत कर लिया।" (४. १२. ४.) बुद्ध भगवान के निर्वाण के उपरांत राजगृह में जो महासभा हुई थी, उसके विवरण में से कुछ अंश यहाँ दिया जाता है- "इस पर पूजनीय महाकस्सप ने संघ के सामने प्रतिज्ञा उपस्थित की-'पूजनीय संघ मेरी बात श्रवण करे । यदि संघ को

  • चुलवग्ग ४. ११. २. ओल्डनवर्ग तथा र हीस डेविड्स का अनु-

वाद (S. BE २० २६.)