पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२०६

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( १७५ ) ६ १०७. एक बार बत्ति (ज्ञप्ति) और फिर एक बार प्रतिज्ञा उपस्थित करने को बत्ति दुतीय' कहते थे जिसका अर्थ है-दो बार ज्ञप्ति उपस्थित करने की क्रिया या नियम । नियम की अवज्ञा और जब उसी बत्ति को फिर तीसरी करने का परिणाम बार उपस्थित करने की आवश्यकता होती थी, तब उसे बत्ति चतुत्थ कहते थे। समूह या समाज के सामने प्रतिज्ञा उपस्थित करने को कम्मवाचा (कर्म- वाच) कहते थे । यदि केवल बत्ति उपस्थित की जाती थी, और कोई प्रतिज्ञा नहीं उपस्थित की जाती थी, अथवा प्रतिज्ञा की घोषणा कर दी जाती थी, पर उससे पहले बत्ति उपस्थित नहीं की जाती थी, तो सब कार्रवाई निरर्थक और नियम विरुद्ध समझी जाती थी। इसी प्रकार जिस कार्य के लिये बत्ति चतुत्थ की आवश्यकता होती थी, उसमें यदि ठीक उतनी बार प्रतिज्ञा नहीं उपस्थित की जाती थी, तो वह प्रतिज्ञा भी नियम-विरुद्ध या गैर-कानूनी समझी जाती थी। इसके अतिरिक्त ज्ञप्ति और प्रतिज्ञा का क्रम भी नहीं बदला जा सकता था। "हे भिक्खुनो, यदि कोई व्यक्ति बत्ति दुतीय वाला कार्य केवल एक ही बत्ति के उपरांत कर डाले अथवा कम्मवाचा की घोषणा न करे, तो वह कार्य नियमानुमोदित या नियम के अनुसार ठीक नहीं है। हे भिक्खुनो, यदि कोई व्यक्ति व्यत्ति दुतीय वाला कार्य दो बत्तियों के उपरांत तो करे, पर कम्मवाचा की घोषणा न करे...,एक बार कम्मवाचा की घोषणा तो करे, पर बत्ति 7