पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२१२

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(१८१) किसी नियुक्त की हुई कमेटी या उपसमिति आदि को सौंप दिया जाता था, जिसके सब सदस्य आपस में मिलकर उस प्रश्न की मीमांसा कर लेते थे और तब निरर्थक व्याख्यान संघ को अपने निर्णय से सूचित कर देते और प्रतिनिधि सभा या समिति थे। यदि वह कमेटी या उपसमिति . कोई निर्णय नहीं कर सकती थो, तो फिर उस बात का निर्णय करने का अधिकार संघ ही के हाथ में रहता था, जो बहुमत अथवा बहुतर के सिद्धांत के अनुसार उसका निर्णय करता था। "हे भिक्खुनो, जब उन भिक्खुओं के द्वारा किसी विषय पर विचार हो रहा हो और उसके संबंध में अनर्गल ( अन- ग्गानि) भाषण आदि होते हों और किसी कथन का अभिप्राय स्पष्ट न होता हो, तो मैं तुम लोगों को अधिकार देता हूँ कि तुम लोग उसका निर्णय (ज्यूरी या कमीशन की) सम्मति से करा*। "हे भिक्खुओ, उसकी नियुक्ति इस प्रकार होगी। पहले उस भिक्खु से पूछ लेना चाहिए कि वह इस पद पर कार्य करने के लिये तैयार है या नहीं। इसके उपरांत कोई विचारशील या सुयोग्य भिक्खु संघ को इस प्रकार संबोधन करे- "पूज्य संघ श्रवण करे। जिस समय इस विषय पर विचार हो रहा था, उस समय हम लोगों में अनर्गल भाषण होने

- चुल्लवग्ग ४. ४. १६. ( उब्बहिका=सं० उद्वाहिका)