पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१८६) प्रकरण) बल्कि सभी नगरनिवासियों को सम्मति ली गई थी। सारे शहर (सकल नगर ) की वोट द्वारा सम्मति ( छंदक) लेने की प्रथा बहुत पहले से थो; और आरंभिक बौद्ध साहित्य मे उसका उल्लेख मिलता है, जिसके आधार पर नातकों की टीका हुई है। पाली मे वोट देने को छंद कहते हैं; और किसी नगर-राज्य में यदि वहाँ के समस्त निवासियों की सम्मति (छंदक ) ली जाय, तो उसका मतलब वही होगा जो आज- कल के अँगरेजी शब्द Referendum का होता है। जो हो, पर इसमे कोई संदेह नहीं कि जातकों में राजा के निर्वाचन के संबंध में जो सारे नगर की सम्मति लेने का वर्णन है, वह बुद्ध के समय से पहले का है। जातक भाग२, पृ० ३५२-३ में एक और वाक्य है जिससे यह प्रमाणित होता है कि राज- नीतिक विषयों में किसी प्रस्ताव या प्रतिज्ञा को सभा या समूह के सामने तीन बार उपस्थित करने की प्रथा बुद्ध के समय से पहले ही से प्रचलित थी। इस काररवाई का वर्णन एक हास्यपूर्ण कहानी में आता है, जिससे यह पता चलता है कि सर्व- साधारण यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते थे—इतनी अच्छी तरह से जानते थे कि वे उसका इस रूप में उल्लेख करते थे। उस कहानी मे यह पाया है कि एक चिड़िया किसी राजा के, जो स्पष्ट ही प्रजातंत्री राज्य का राजा है, चुनाव के लिये प्रतिज्ञा कहकर दोहराती है। जब वह चिड़िया अपनी प्रतिज्ञा दो बार दोहरा चुकी, तब समूह के दूसरे सदस्य ने