पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२२१

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(१-८०) उसका विरोध किया। प्रतिज्ञा का विरोध करनेवाले ने कहा-जरा ठहर जाओ। और उसने विरोध में कुछ कहने की आज्ञा मॉगी। वह आजा उसे इस शर्त पर मिली कि वह अर्थ और धर्म के सिद्धांतों के संबंध में अपनी युक्तियाँ उपस्थित करे। इस पर उस भापण करनेवाले ने अपनी युक्तियाँ वतलाई और उसका विरोध सब लोगों ने स्वीकृत कर लिया। उसका विरोध प्रसिद्ध प्रजातंत्री आधार पर था; और वह आधार यह था कि जिस राजा* के लिये प्रस्ताव किया गया है, उसकी आकृति मनोहर नहीं है। यह स्पष्ट ही है कि यह प्रजातंत्री निर्वाचन के उस सिद्धांत की केवल नकल ही उतारी गई है जिसमें अन्यान्य आधारों के अतिरिक्त इस वात पर भी ध्यान रखा जाता है कि चुना जानेवाला राना देखने में सुंदर और रूपवान् हो। परंतु इस नकल और परिहास में जो काररवाई बतलाई गई है, वह हमारे सिद्धांत की पुष्टि करती है। यह काररवाई मुख्यतः प्रजातंत्र ही से संबंध रखती है। वौद्ध धर्म के साथ उसका संबंध वाद में स्थापित किया गया है और वह संबंध गौण ही है। जब जब अपने संघ के संबटन में कुछ विशिष्ट अवस्थाएँ उत्पन्न होती थी, तब तब बुद्ध भगवान् कार्य निर्वाह के उन्हीं नियमो आदि का अवलंबन करते थे जो पहले से चले आते थे। स्वयं उनका जन्म एक प्रजातंत्री राज्य में हुआ था और

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