पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२२४

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आधार बारहवाँ प्रकरण छंदाधिकार और नागरिकता ६११७. जिन कुल-प्रजातंत्रों में केवल बड़े बड़े सरदारों और प्रधान पुरुषों का ही शासन हुआ करता था, उनमें छंद अथवा मत प्रदान करने का अधिकार छंदाधिकार का केवल कुल अर्थात् हिंदू कुल के आधार पर ही निर्भर करता था। महाभारत मे जो यह लिखा हुआ है कि गण मे कुल और जाति* के विचार से समानता होती है, उससे यहो ध्वनि निकलती है। जाति और कुल के विचार से जो समानता होती थी, उसी के आधार पर हिदू प्रजातंत्र के अंतर्गत राजकार्य संबंधी समानता भी स्थित थी। संघ में का प्रत्येक स्वतंत्र मनुष्य जाति के विचार से समान होता था और राजनीतिक कार्यों के लिये सब कुल समान माने जाते थे। पाली त्रिपिटक में भी एक ऐसा वाक्य आया है, जिससे यह सिद्ध होता - देखो चौदहवां प्रकरण । जाति का वास्तविक अर्थ जन्म ही है, वर्ग नहीं। जैसा कि हम बतला चुके हैं, प्रजातंत्रों में सभी वर्गों के लेोग हुआ करते थे। संभवतः इस जाति या जन्म का अभिप्राय यह है कि मनुष्य जन्म से ही स्वतंत्र रहा हो, दास के घर में जन्मा हुआ न हो। वैदिक 'सजात' शब्द से मिलान करो। देखो पचीसा प्रकरण । हि-१३