पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२२७

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( १९६) हरण दिए हैं, उनमें से एक उदाहरण ग्लौचुकायनकों का भी है, जिनके राज्य का पता हमें यूनानी लेखकों से लगता है। वे ग्लुचुकायन के प्रति भक्ति रखते हैं, इसलिये वे ग्लौचुकायन कहलाते हैं। पाणिनि के एक नियम का संशोधन करते हुए कात्यायन ने मद्रों और वृजियों के प्रजातन्त्री उदाहरण दिए हैं। 1 मद्र का भक्त मद्रक कहलावेगा; और जो वृजी के प्रति भक्ति रखेगा, वह वृजिक कहा जायगा। यहाँ भक्ति का अभिप्राय राजभक्ति या राजकीय दृष्टि से प्रभुत्व की स्वीकृति है। भक्ति का मुख्य अर्थ है-भाग या विभाग करना; और गौण अर्थ है-अनुराग या मन की प्रवृत्ति । किसी व्यक्ति का जन्म- स्थान या निवासस्थान सूचित करनेवाले नाम बनाने के जो नियम ठक ॥६६॥ महाराजाठन ॥ १७ ॥ वासुदेवाजु नाभ्यां वुन् ॥ ६ ॥ गौचक्षत्रियाख्येभ्यो बहुलवुज ॥ १६ ॥ जनपदिनां जनपदवत्सर्पजनपदेन समानशब्दानां बहुवचने ॥ १० ॥ सूत्र ६६ मे भक्ति के व्यवहार में पक्षपात और राजभक्ति का अंतर बतलाया गया है। मिलाओ काशिका (३४३); इसमें "श्रचित्त" शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है। दूध की ओर प्रवृत्ति होना "अचित्त" भक्ति है; पर राजनीतिक भक्ति मन की वह अवस्था है जो बहुत समझ बूझ और विचार के उपरांत होती है। देखो ऊपर पृ० १२७ ॥ | पाणिनि ४. ३. १००. सर्ववचनं प्रकृतिनिहाँसार्थम् ॥१॥ तच्च मद्वृज्यर्थम् ॥ २ ॥ पतंजलि-माद्रो भक्तिरस्य मादौ वा भक्ति- रस्य मद्रक इत्येव यथा स्यात् वार्यो भक्तिरस्य वाज्यौँ वा भक्तिरस्य वृजिक इत्येव यथा स्यात्। महाभाष्य, खण्ड २, पृ० ३१४-१५.