पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२३२

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तेरहवां प्रकरण प्रजातंत्रों की न्याय-व्यवस्था और कानून ६ १२०. हिंदुओं के धर्मशास्त्रों में कुल-राज्यों के भी कानून, नियम या धर्म मान्य किए गए हैं और गणों के भी* । कुल-न्यायालय में कुलिक अथवा उच्च कुलों के सरदार न्यायाधीश हुआ करते थे। जहाँ कुल-शासन और

याज्ञवल्क्य, १,३६०२, १८६.

कुलानि जातीः श्रेणीश्च गणानानपदानपि । स्वधर्माच्चलितान् राजा विनीय स्थापयेत्पथि ॥ १।३६० ॥ निजधर्माविरोधेन यस्तु सामयिको भवेत् । सोऽपि यत्नेन संरक्ष्यो धर्मो राजकृतश्च यः ॥ २ । ४८६ ॥ इसके अतिरिक्त देखो-ग्रामश्रेणिगणानाञ्च संकेतः समयक्रिया 1 (वीरमित्रोदय, पृ० ४२४ में उद्धत बृहस्पति का वाक्य ।) और मनु, ८, ४१ जातिजानपदान्धर्माजणीधींश्च धर्मवित् । समीक्ष्य कुलधर्माश्च स्वधर्म प्रतिपादयेत् ॥ ८।४१॥ +राजपाल, जिसके नाम पर पाली त्रिपिटक में एक निकाय है, स्वयं एक कुलपुत्त था और एक अग्गकुलिक का पुत्र था । साथ ही देखो- कुलिकास्सार्थमुख्याश्च पुरग्रामनिवासिनः । ग्रामपरिगणनेण्यश्चातुर्विद्यश्च वर्गिणः कुलानि कुलिकाश्चैव नियुक्ता नृपतिस्तथा ॥ (वीरमित्रोदय, पृ० ११ टीका-कुलिकाः कुलश्रेष्ठाः ।