पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२३३

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( २०२) प्रजातंत्र दोनों को मिश्रित शासन-प्रणाली होती थी, वहाँ भी हमें कुलिक न्यायालय मिलेगा। इस प्रकार का न्यायालय हमें वृजियों में मिलता है, जिनमें फौजदारी मुकदमों की जॉच करने के लिये आठ कुलिकों का एक समूह या बोर्ड होता था। धर्मशास्त्रों में इस बात का विधान है कि कुल-न्याया- लय के निर्णय के उपरांत उसकी अपील गण न्यायालय में होनी चाहिए। यह बात हमारी समझ में तभी आ सकती है, जब कि हम यह मान ले कि एक ऐसी मिश्रित शासन-प्रणाली भी होती थी, जिसमें कुल शासन भी होता था और प्रजातंत्र शासन भी। जिस देश में इस प्रकार की शासन-प्रयाली प्रचलित होगी, उसमें कुलिक न्यायालय तो होगा, पर वह गण की अधीनता में और उसके मातहत होगा। वृजि शासन-प्रणाली में कुलिक न्यायालय वहाँ के गण के तीन प्रधान अधिकारियों-सेनापति, उपराज और राजा- की अधीनता और मातहती में था। महाभारत में कहा गया है कि फौजदारी के मुकदमों पर विचार करना कुल-वृद्धों का धर्म या कर्तव्य है; और न्याय सभापति या प्रधान के द्वारा

- देखो ऊपर $ ४६-५०, मिलायो कात्यायन (वीरमित्रोदय पृ.

४१ में उद्धत)। वणिग्भिः स्यात्कतिपयैः कुलभूतैरधिष्ठितम्, जिसमें 'कल' न्याया-- लय के अर्थ में आया है। देखो आगे पृ० २०३ का तीसरा नोट ।