पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२३५

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(२०४) अपील स्वयं एकराज के न्यायालय में अथवा राजकीय प्रधान न्यायाधीश के न्यायालय में हुआ करे* । ६१२१. हिन्दू धर्मशास्त्रों से यह बात प्रमाणित होती है कि गणों के निज के कानून या धर्म हुआ करते थे क्योंकि जैसा कि हम अभी ऊपर बतला चुके हैं, उन धर्मशास्त्रों ने उनका स्वतंत्र अस्तित्व मान्य किया है। यूनानी लेखकों के लेखों से भी, जिन्होने हिंदू प्रजातंत्रों के कानूनों की प्रशंसा की है, यह बात प्रमाणित होती है। महाभारत में भी इनकी कानून संबंधी व्यवस्था की प्रशंसा की गई है। इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि लिच्छवियों में एक लेखा ऐसा भी होता था जिसमें पहले के कानूनी उदाहरण या नजीरें आदि लिखी रहती थीं। धर्मशास्त्रों में गणों के कानूनों को समय कहा गया है। समय का शब्दार्थ होता है-वह निर्णय या प्रस्ताव जो किसी समूह में स्वीकृत या निश्चित हुआ हो। सम् +इ= सभा, जिसमें बहुत से लोग एकत्र हो । अर्थात् गणों के जो नियम होते थे, वे उनकी सभाओं या समूहों में स्वीकृत होते थे ।

  • देखो पृ० १२०२ के नोट और पृ० २०३ का तीसरा नोट ।

जिन रिहीस डेविड्स कृत Budhist India पृ० २२. राज्यों में एकराज शासन-प्रणाली प्रचलित होती थी, उनमें भी इस प्रकार के लेखे रखे जाते थे। देखो जातक भाग ३, पृ० २६२, और जातक भाग ५. पृ० १२५. + वीरमित्रोदय (पृ० ४२३-४२५) में उद्धत किए हुए नारद और बृहस्पति के उद्धरण।