पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२३७

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1 (२०६) समय से बहुत पहले ही गणों का अस्तित्व नहीं रह गया था और लोग उनका वास्तविक महत्व भूल गए थे ६१२४. महाभारत के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि गण का अभिप्राय समस्त राजनीतिक वर्ग से है और उसके अभाव में पार्लीमेंट से है, केवल शासक-मंडल से उसका अभि- प्राय नहीं है। (डाक्टर थामस ने भी इस मत का समर्थन किया है (J. R. A S. १६१५, पृ० ५३४)। शासक-मंडल में एक प्रधान या सभापति और अनेक गण-मुख्य होते थे; और ये सब लोग मिलकर समाज या लोक का कार्य संचालन करते थे (श्लोक २३%)। राजकीय मंत्र या मंतव्य आदि निश्चित करना भी उन्ही के अधिकार में था (श्लोक २४)। वे लोग एकत्र होकर सभाएँ या अधिवेशन करते थे और उनमें मंत्रों या मंतव्यों पर विचार करते थे (श्लोक २५)। वे न्याय विभाग की व्यवस्था पर भी ध्यान रखते थे (श्लोक २७)। इस प्रकार शासन कार्य के लिये गण के अंतर्गत एक भिन्न संस्था होती थी। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पाठवे श्लोक में गण के बहुत से सदस्य होने का उल्लेख है और चौबीसवें श्लोक में इन सब की समष्टि का उल्लेख है। गण के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती थी, इसलिये मंत्रों या संतव्यों को गुप्त रखना असंभव होता था। महाभारत के

  • गण-मुख्य = संघ-मुख्य; अर्थ-शास्त्र पृ० ३७७. (४०-१)।

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