पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२४१

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( २१० ) करने की कामना करते हैं और अपने सुहृद् या मित्र प्राप्त करते हैं। (८) मेरी समझ में यह आता है कि भेद या फूट ही उनके विनाश का मुख्य कारण है। (और फिर) मेरी समझ में (अपनी) बहु संख्या के कारण अपना मंत्र गुप्त रखने में कठिनता होती है। (६) हे शत्रुओं का दमन करनेवाले, मैं इस विषय में विस्तृत बातें सुनने का आकांक्षी हूँ। हे पार्थिव, मुझे यह भी बतलाओ कि वे किस प्रकार अपने आपको भेद या फूट से बचाते हैं।" भीष्म ने कहा-(१०) "हे नराधिप, लोभ और अमर्ष (द्वेष) ये ो मुख्य कारण ऐसे हैं जिनसे गथों मे परस्पर वैर उत्पन्न होता है, और हे भारतो मे श्रेष्ठ, इन्हीं से संभावित हानियाँ राजाओं के कुलों में भी वैर उत्पन्न होता है। (११) पहले गणों या कुलों में लोभ उत्पन्न होता है और उसके अनंतर अमर्ष आता है; और तब इन दोनों के कारण क्षय और व्यय होता है जिससे एक दूसरे का विनाश होता है। (१२) साम, दान और विभेद के द्वारा तथा क्षय, व्यय और भय के दूसरे उपायों का अवलंबन

  • यहाँ पटल की तरह के कुल-राज्यों से अभिप्राय है, क्योंकि

इस समाज में युद्ध के संचालन का भार दो भिन्न भिन्न कुलों के वंशानु- क्रमिक राजाओं के हाथ में होता है और सारे राज्य पर वृद्धों के एक मंडल का पूरा पूरा और सर्व-प्रधान अधिकार होता है। (डायोडोरस) इसके अतिरिक्त देखो अर्थशास्त्र पृ० ३५. कुलस्य वा भवेद्राज्य कुल- संघो हि दुर्जयः।