पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२४३

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( २१२) करते हैं। (१८) अच्छे गण इसलिये विवर्द्धित होते हैं कि वे अपने पुत्रों और भ्राताओं (नई पीढ़ी के लोगों और सदस्यों* ) को ठीक तरह मर्यादा से रखते हैं और सदा उन्हें विनयी बनने की शिक्षा देते हैं; और ( केवल ) उन्हीं को ग्रहण करते हैं जो विनीत होते हैं। (१९) "हे महाबाहु, सदा अपने गुप्तचरों, मंत्र और राज- कोष का सब काम ठीक तरह से करते रहने से गण सदा सब प्रकार से विवर्द्धित होते रहते हैं । (२०) (अपने) प्राज्ञों, शूरों, महोत्साहियों और कर्तव्य के पालन में दृढ़ रहनेवाले राजपुरुषो का सहा उचित मान करते रहने से गण विवर्द्धित होते रहते हैं। (२१) धनवान्, शूर, शास्त्रज्ञ और शास्त्रपारगा गण संकटों और कष्टों में पड़े हुए असहायों ( अर्थात् अपने सह- योगियों या सदस्यों ) की सहायता करते हैं। (२२) "क्रोध, भेद, भय, पारस्परिक विश्वास के प्रभाव, दंड, सैनिक आक्रमण, अत्याचार, निग्रह, पारस्परिक दमन और वध के कारण गण तुरंत ही शत्रु के वश में हो जाते हैं। (२३) अतः गण के प्रधान के द्वारा गणमुख्यों या गण के अच्छे अच्छे

आजकल भी भारतीय पंचायतो और बिरादरियों में सब लोग

एक दूसरे को 'भाई' कहकर सम्बोधन करते हैं, जिससे सब की समानता का भाव सूचित होता है। जैसा कि हमें अन्यान्य साधनों से भी पता चल चुका है, गणो मे होनेवाली विद्या और शास्त्रों की चर्चा का यह स्पष्ट उल्लेख है।