पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२४४

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(२१३ ) लोगों का मान होना चाहिए-उनकी आज्ञा का पालन होना चाहिए। हे राजन्, लोकयात्रा या समाज के संचालन का अधिकार मुख्यतः उन्हीं के हाथ में रहना चाहिए । (२४) हे शत्रुओं का दमन करनेवाले, मंत्रगुप्ति या राजकीय मंतव्यों को गुप्त रखने का कार्य (विभाग ) गणों के प्रधानों के हाथ में रहना चाहिए। हे भारत, गण के सब लोग इन मंत्रों को जान लें, यह बात ठीक नहीं है। (२५) गणमुख्य या गण के नेता एकत्र होकर गणों के हित का कार्य करें। "जो गण दूसरे गणों से अलग रहता है, गयों के संघात से अपने आप को अलग कर लेता है या दूसरे गणों के साथ व्यवहार में ठीक नहीं रहता, उसकी गति इससे भिन्न या अन्यथा हुआ करती है। (२६) जब वे एक दूसरे से भिन्न या अलग हो जाते हैं और केवल अपनी व्यक्तिगत शक्ति पर ही निर्भर करते हैं, तब उनका अर्थ या वैभव नष्ट हो जाता है और अनर्थ होने लगता है। (२७) “निग्रह या फौजदारी मुकदमों का न्याय गण के प्रधान के द्वारा (धर्मशास्त्र के) पंडितों के हाथों और ठीक तरह से होना चाहिए। यदि कुलों मे कलह उत्पन्न हो और कुल-वृद्ध लोग उसकी उपेक्षा करें-उसकी ओर से उदासीन रहें-तो (२८) वे गोत्र का नाश करते हैं और गण का भी भेद या नाश करते हैं 1 "आभ्यंतरिक भय से गण की रक्षा करनी चाहिए; बाह्य भय तो असार है। (२६) क्योंकि हे राजन्, आभ्यंतरिक भय