पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२४६

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पंद्रहवाँ प्रकरण नए प्रजातंत्रों की सृष्टि ६ १२५.जब हम ईसा पूर्व छठी और पॉचवीं शताब्दियों के समय की ओर ध्यान देते हैं, तब केवल बौद्धों के ही नहीं बल्कि जैनों के भी ऐसे धार्मिक संघ हमें मिलते नए धार्मिक गण हैं जिनके संबंध में राजनीति-विज्ञान के पारिभाषिक शब्दों का व्यवहार किया जाता था। जैन सूत्रों से विदित होता है कि कई व्यक्तियों ने नए गयों और कुलों की स्थापना की थी, जिनका नामकरण कभी तो उनके सस्थापक के नाम पर और कभी उनके स्थान के नाम पर होता था। उदाहरणार्थ गोदास द्वारा स्थापित गोदास गण, उत्तर और वलिस्सह दोनों का मिल कर स्थापित किया हुआ उत्तर- वलिस्सह गण, रोहण द्वारा स्थापित उद्देह गण, कर्मद्धि द्वारा स्थापित इन्द्रपूरक कुल*। इसी प्रकार हमें बौद्ध संघ के अनेक संप्रदायों तथा नए संघों की स्थापना का भी पता चलता है। केवल हमारे धार्मिक प्रजातंत्रों के इतिहास में ही इस प्रकार की नई सृष्टियाँ नहीं होती थीं। महाभारत में यह बतलाया गया है कि प्रजातंत्रों में अनैक्य उत्पन्न होने तथा नए संप्रदायों के स्थापित होने से अनेक प्रकार की हानियों की हानले, इंडियन एंटीक्वेरी, ११. २४६. और २०.३४७.