पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२४७

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नए प्रजातंत्रों के (२१६ ) संभावना होती है। कदाचित् महाभारत के कर्ता लोग यह बात भली भॉति जानते थे कि राजनीतिक क्षेत्र में अनेक प्रकार के विरोध तथा विभाग आदि होते रहते हैं। संभवतः दो मल्लों और दो मद्रो' की सृष्टि भी इसी प्रवृत्ति का परिणाम थी। इस प्रकार के विभेदजन्य उहाहरयों के अतिरिक्त हमें बिलकुल ही नए प्रजातंत्रों की सृष्टि के भी उदाहरण मिलते हैं। जो कुरु और पंचाल, वैदिक ऐतिहासिक उदाहरण साहित्य तथा जातकों के अनुसार, पहले एकराज शासन-प्रणाली के अधीन थे, उन्होंने ईसवी पाँचवौं या चौथी शताब्दी में प्रजातंत्र शासन-प्रणाली ग्रहण की थी। जैसा कि हम अभी बतला चुके हैं, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उनका उल्लेख प्रजातंत्रों के वर्ग में है। शासन प्रणाली के परिवर्तन का दूसरा उदाहरण, जो प्रोफेसर रहीस डेविड्स बतला चुके हैं, विदेहों का है। वैदिक साहित्य तथा जातकों के अनुसार ये भी पहले एकराज शासन-प्रणाली के अधीन थे। मेगास्थनीज कहता है कि तीन बार प्रजातंत्र शासन-प्रथाली . सभापर्व (अ० ३१. १२.) में निम्न मल्लों को दक्षिण मल्ल कहा गया है जिसके अनुसार उच्च मल्लों का स्थान कोशल के बगल में पड़ता है (३०. ३.)। । देखो आगे १६८. भाग २. + Budhist India पृ० २६.