पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२४९

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(२१८) आधार का अंत हो चुका था। जाति या गोत्र आदि का यह आधार ऐसा था, जिस पर भारत से बाहर रहनेवाली हमारी बराबरी की सभी जातियों में प्राचीन काल मे प्रजातंत्रों की सृष्टि हुई थी; और जैसा कि महाभारत में वृष्णियों के संबंध में पाए हुए उल्लेखों तथा संभवत: शांतिपर्व के १०७ वे अध्याय में पाए हुए गोत्र शब्द से भी पता चलता है, स्वयं भारत में भी सब से आरंभ मे प्रजातंत्रों की स्थापना इसी आधार पर हुई थी। किसी संघात या समाज का नाम उसके संस्थापक या प्रधान आदि के नाम पर रखने की जो प्रथा है, उससे हमें प्रजातंत्रों के मूल का अन्वेषण करने में बहुत कुछ सहायता मिलती है। गाँव की पंचायत का नाम उसके प्रामग्री के नाम पर होता था* | वैदिक चरणों के नाम उनके संस्थापकों के नाम पर होते थे । धार्मिक संघों या संस्थानों आदि के नाम उनके पहले संघटनकर्ताओं के नाम पर होते थे, और इसी प्रकार हमारे प्रजातंत्रों का भी नामकरण होता था। जैसा कि ऊपर ( गणपाठ ४. २. ५३.) कहा जा चुका है, वैदिक काल में एकराज शासन-प्रणाली प्रचलित थी। जैसा कि हम अभी बतला चुके हैं, भारतीय प्रजातंत्र मेगास्थनीज ने भी लिखा है कि ईसवी गोत्रो याकुलोंकेबाद के हैं चौथी शताब्दी में यहाँ यह प्रवाद था कि एकराज शासन-प्रणाली के उपरांत प्रजातंत्र शासन-प्रणाली

- देखो पहले पृ० १६ का अंतिम नोट ।