पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२५०

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( २१६) की स्थापना हुई थी। इन सब प्रमाणों से सुचित होता है कि प्रजातंत्र प्रणाली वैदिक काल के बाद की और कृत्रिम है, अर्थात् वह गोत्रों आदि की सृष्टि हो चुकने के उपरांत की तथा दार्श- निक है। उदाहरण के लिये इस प्रकार की शासन-प्रणालियों के नामों को ही लीजिए-वैराज्य जिसका शब्दार्थ है राजारहित प्रणाली, स्वाराज्य = आत्म शासन-प्रणाली, भौज्य = अस्थायी शासन-प्रणाली। ये सब नाम किसी गोत्र या जाति आदि के नाम पर नहीं बने हैं। इनमें गोत्रो के नाम पर शासन-प्रणा- लियों के नाम नहीं रखे गए थे। शासन-प्रणालियों के ये सब नाम कृत्रिम या दार्शनिक हैं। इस परंपरागत प्रवाद का समर्थन वेदों से होता है कि पहले एकराज शासन-प्रणाली थी; और इस प्रवाद का समर्थन ऐतरेय ब्राह्मण से होता है कि एक- राज शासन-प्रणाली परित्यक्त कर दी गई थी और प्रजातंत्र शासन-प्रणालियाँ स्थापित की गई थीं। ६१२७. ऊपर जो कुछ परिणाम निकाला गया है, उस पर ध्यान रखते हुए पुराणों में आए हुए इस परंपरागत कथन को लीजिए कि मध्य देश के एक राजवंश कृत्रिम राजनीतिक के दो छोटे राजकुमार, यौधेय और मद्र, कुल पंजाब से निकलकर बाहर चले गए थे और उन्होंने अपने नामों पर राज्यों की स्थापना की थी। यह पौराणिक इतिहास सर्वश्रुत वास्तविक घटनाओं या तत्त्वों से पूरा सामंजस्य रखता है। इस प्रकार के संघातों या संस्थाओं