पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२५१

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(२२०) के नाम उनके संस्थापकों के नाम पर रखे जाते थे। इस प्रकार मद्र और यौधेय किसी एक वंश या गोत्र के नहीं थे, बल्कि कृत्रिम धार्मिक शाक्य-पुत्रों की भॉति इनके भो कृत्रिम राज- नीतिक गोत्र तथा राज्य थे। इन दोनों अवस्थाओं में राज्य के आधार पर ही उनके नागरिकों का नामकरण हुआ था, अर्थात् यह नाम कृत्रिम गोत्र के रूप में था; अथवा अाजकल के शब्दों में यह राजनीतिक राष्ट्रीयता का सूचक नाम था और उस राष्ट्रीयता के विपरीत था जिसे हम गोत्रीय राष्ट्रीयता कह सकते हैं। इस विवेचन को देखते हुए और इस पर पूरा ध्यान रखते हुए हम पतंजलि द्वारा उद्धृत किसी प्राचीन वैयाकरण (संभवतः व्याडि) के इस कथन का अभिप्राय समझ सकते हैं कि क्षुद्रक-मालव गोत्र-नाम नहीं है* अर्थात् ये किसी एक ही वंश में उत्पन्न लोगों के नाम नहीं हैं। मद्रों और यौधेयों की भॉति ये दोनों भी राजनीतिक राष्ट्र थे। ये लोग भी ऐसे राज्यों के निवासी या नागरिक थे जिनके नाम दो व्यक्तियों के नाम पर पड़े थे। इसके अतिरिक्त हमें पाणिनि से एक और प्रमाण यह मिलता है कि योद्धा राज्यों में किसी एक गोत्र या वंश के नहीं, बल्कि सभी जातियों के लोग हुआ करते थे। महाभारत के अनुसार अराजक प्रजातंत्र भी गोत्रीय आधार पर नहीं था, बल्कि वह कानूनी और पंचायती आधार यौधेय तथा मद्र, मालव तथा क्षुद्रक की भांति और भी

देखो पहले पृ० ११४, नोट ।

पर था।