पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२५४

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(२२३ ) की ही सृष्टियों में से थे। यह संभव है कि आरंभ में सब कठ लोग एक ही गोत्र के रहे हों, [जैसा कि पतंजलि के कठ- जातीयाः पद से सूचित होता है। संभव है कि जाति का विचार गौण रहा हो। गण राज्य में किसी स्वतंत्र व्यक्ति को नागरिकता का समान अधिकार प्रदान करने में जन्म (जाति) का विचार रखा जाता था। अतः ऐसी दशा में कठ- जातीय और कठ-देशीय का अभिप्राय 'कठ देश में उत्पन्न मनुष्य' 'कठ देश के मनुष्य' ही हो सकता है। और उस कठ देश तथा कठ राज्य का नामकरण उसके राजनीतिक संस्थापक किसी एक कठ के नाम पर हुआ होगा। पतंजलि के दिए हुए दूसरे उदाहरण भी इसी मत की पुष्टि करते हैं उदाहरण के लिये करक-जातीय, करक-देशीय, औन्न-जातीय, औघ्न-देशीय आदि को लीजिए। श्रुघ्न और करक ये दोनों स्थानों के नाम थे-गोत्र-नाम नहीं थे। जान पड़ता है कि करक शब्द की व्युत्पत्ति किसी नदी से है, जैसा कि पारस्कर शब्द में के 'कर' से भी सूचित होता है, अर्थात् कर के आसपास का प्रदेश । यहाँ भी और पाणिनि (६. ३. ४१.) मे भी जाति का अर्थ बहुधा जन्म ही है। उसका अभिप्राय आजकल का सा सामाजिक विभाग या कौम नहीं है।] और फिर जो समाज पहले एक गोत्रीय समष्टि के रूप में रहा हो और जिसने अपने पहले संघटन - पाणिनि ६.३. ४२. कीलहान, ३, पृ० १५७.