पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२५७

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(२२६) ब्राह्मण में उनका उल्लेख एक ऐतिहासिक समाज या जाति के रूप में है। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार आर्य भारत का एक बड़ा अंश-उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-प्रजातंत्र शासन- प्रणालीवाले राज्यों से भरा पड़ा था; केवल मध्य देश में एकराज शासन-प्रयाली प्रचलित थी। यह मध्य देश कुरुक्षेत्र ( दिल्ली के जिलों) से प्रयाग तक, गंगा और यमुना के मध्य के दुआब मे, था । इससे और पूर्व प्राची में (जिसका केन्द्र मगध में या उसके आस पास था) इस ब्राह्मण के अनुसार साम्राज्य नामक शासन- प्रणाली प्रचलित थो, जिसका शब्दार्थ है-अनेक एकराजों की समष्टि; अर्थात् किसी प्रधान एकराज के साथ था उसकी अधीनता में कई और एकराज हो जाया करते थे। केवल गंगा यमुना के मध्य के प्रदेश दुआव तथा मगध को छोड़कर शेष समस्त देश में प्रजात'त्र शासन प्रचलित था। जैसा कि पाली प्रामाणिक ग्रंथों से सूचित होता है, प्रायः ठीक यही दशा बुद्ध के समय में भी थी। अवदानशतक के अनुसार बुद्ध के समय में आर्य भारत के राज्य गणाधीन और राजाधीन इन दो भागों में विभक्त हो सकते थे; अर्थात् कुछ स्थानों में गण राज्य थे और कुछ में एकराज शासन-प्रणाली थी (केचिद् देशा गणाधीनाः, केचिद राजाधीनाःt)। संस्कृत की प्रसिद्ध प्रचलित ,

  • ऐतरेय ब्राह्मण में इस मध्य देश में अवस्थित जिन एकराजों

का उल्लेख है, वे ये हैं-कुरु, पंचाल, उशीनर और वश । +देखो पहले 8 २६. पृ० ४१-४२.