पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२५८

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प्रणाली के अनुसार यह क्रम, जिसमे प्रजातंत्रवाले देशों का उल्लेख पहले हुआ है, यह सूचित करता है कि उस समय भी यहाॅ अधिक संख्या ऐसे ही देशों की थी जिनमें प्रजातंत्र- प्रणाली प्रचलित थी।

सिकंदर के समय में भी उत्तर और पश्चिम तथा दक्षिण- पश्चिम में अधिकांश प्रजातंत्रवाले देश ही थे। अतः जिस समय चंद्रगुप्त अपने साम्राज्य-सिंहासन पर आरूढ़ हुआ था, उससे पहले कम से कम लगातार एक हजार वर्ष तक यहाॅ प्रजातंत्र चले आते थे।

हिंदू प्रजातंत्रों का यही सब से अधिक उन्नति का काल था। राष्ट्रीय वैभव के लिये उत्तर कुरु लोग परम प्रसिद्ध हो चुके थे। इस काल मे विद्वत्ता तथा पांडित्य के लिये मद्र और कठ, वीरता के लिये क्षुद्रक और मालव, राजनीतिक ज्ञान तथा अदम्य स्वतंत्रता के लिये वृष्णि और अंधक, बल के लिये वृजि, ज्ञान-प्रकाश, समानता के दार्शनिक सिद्धांतो तथा निम्न कोटि के लोगों के उद्धार के लिये शाक्य तथा उनके पड़ोसी आर्य भारत के राष्ट्रीय जीवन तथा राष्ट्रीय साहित्य में अपने ऐसे चिह्न अंकित कर गए हैं जो किसी प्रकार मिटाए नहीं मिट सकते।