पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२६३

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( २३२) अर्थात् यही वात हम यों भी कह सकते हैं कि (१) से (५) तक सव को* अशोक अपरांत ही कहता है। इसके विपरीत प्रधान शिलाभिलेखों के तेरहवें प्रज्ञापन में नीचे लिखे नाम पाए हैं- (१) यान (२) कंवोज (३) नामक और नामपंक्ति (१) भोज (५) पितिनिक (६) अंध्र और पुलिद। यहाँ इन्हें अपरांत नहीं कहा गया है, बल्कि इनके संबंध में लिखा है "यहाँ राजविषयों के अंतर्गत'। यह तो हम जानते ही हैं कि इनमें से अंक (२), (४) और (५) वालो में ऐसी शासन-प्रणालियाँ थीं जिनमें कोई राजा नहीं होता था। अब यहाँ दो प्रश्न उपस्थित होते हैं। पहला प्रश्न तो यह है कि अशोक के साम्राज्य में शासन की दृष्टि से इन सव का कौन सा स्थान था ? और दूसरा प्रश्न यह है कि क्या इस समूह में कांवोज राष्ट्रिक, भोन तथा पितिनिक यही तीन प्रजातंत्री समाज या विरादरियाँ थीं? इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये हमें स्वयं शिलालेखों की बहुत ही वारीकी से जांच करनी चाहिए ।

. इध राजविसयम्हि । (गिरनार) सेनार्ट,

रायल एशिया- टिक सोसायटी; १६००. पृ० ३३७.