पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२६४

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(२३३) ६ १३१. जानने की पहली बात यह है कि यहाँ अपरांत और राज-विषय का क्या अर्थ है। अशोक के प्रज्ञापनों मे अंत शब्द का अर्थ पड़ोसी (पड़ोसी राज्य) है। अपरांत का अर्थ इस बात का ध्यान रखते हुए अपरांत शब्द के दो अर्थ किए जा सकते हैं। पहला अर्थ ता पश्चिम के पड़ोसी' हो सकता है और दूसरा अर्थ 'पश्चाद्वर्ती पड़ोसी' हो सकता है। अर्थात् इस शब्द से या तो पश्चिमी भारत की सीमा पर के राज्य अभिप्रेत हो सकते हैं और या साम्राज्य के अंतर्मुक्त राज्य हो सकते हैं। यदि हम अपरांत शब्द का पहला अर्थ ले, तो उसका अर्थ केवल देश का पश्चिमी अंत या सीमा अर्थात् पश्चिमी भारत हो सकता है । भोज और राष्ट्रिक, तथा अनुमानतः पितिनिक भी, अपरांत या पश्चिमी भारत के निवासी थे। परंतु अफगानिस्तान में रहनेवाले योन तथा कांबोज किसी प्रकार पश्चिमियों के अर्थ मे अपरांत नहीं कहे जा सकते; क्योंकि प्राचीन भारतीय साहित्य मे उस प्रदेश को सदा उत्तर ही कहा गया है। इसी प्रकार गांधार भी पश्चिमी नहीं कहे जा सकते। वे भी सदा उत्तर ( उदीची उत्तरापथ) में ही माने गए हैं। इसलिये हमें अपरांत शब्द का पश्चिमीवाला अर्थ छोड़ देना पड़ता है। अब तेरहवे प्रज्ञापन में इन सब के लिये 'इधर' या 'यहाँ' शब्द आया है, जिसका अभिप्राय है मौर्य साम्राज्य की सीमाओं के अंदर; और जो एंटियोकस तथा चोलों आदि की