पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२६६

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(२३५) ६ १३३. इस वर्ग के प्रजातंत्र, अशोक के राजविषय अथवा अंतर्मुक्त पड़ोसी अपरांत ऐसे राज्य थे जो सम्राट अशोक की ओर से सास अथवा दान की नीति के अधिकारी थे। वे साम्राज्य की सीमाओं के अंतर्भुक्त अपना शासन आप करने- वाले राज्य थे। इसमे संदेह नहीं कि यह सूची पूरी नहीं है। सम्राट ने केवल उन्हीं राजविषयों का उल्लेख किया है, जिन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। जान पड़ता है कि अशोक को भोजो के साथ जैसी सफलता हुई थी, वैसी राष्ट्रिकों के साथ नहीं हुई थी, क्योंकि तेरहवें प्रज्ञापन मे उसने भोजों को उन स्थानों की सूची मे रखा है जिनकी प्रवृत्ति बौद्ध धर्म ग्रहण करने की ओर हो चुकी थी। पर पॉचवें प्रज्ञापन में उसने राष्ट्रिकों को ऐसे स्थानों के अंतर्गत रखा है जिनमे अशोक के धर्मप्रचारक तत्परतापूर्वक कार्य कर रहे थे। $ १३४. गांधार लोग सिकंदर के समय से पहले ही अपनी पुरानी राजधानी तक्षशिला से हटकर अलग हो गए थे। ई० पू० ३२६ मे उनमे एकराज शासन- नाभपंक्तियों की प्रयाली प्रचलित थी। सुप्रसिद्ध राजा शासन-प्रणाली बड़े पुरु का भतीजा युवक पुरु उनका शासक था। यद्यपि हमें इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि ई० पु०२०० में भी गांधारो मे प्रजातंत्र शासन-प्रणाली प्रचलित थी*,

महाभारत, उद्योगपर्व, अध्याय १६७ के अनुसार गांधारो में राजा

के स्थान पर मुख्य लोग हुआ करते थे। परंतु पतंजलि ( ४.२ १२.)