पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२६७

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( २३६) तथापि यहाँ उनकी शासन-प्रणाली के संबंध में कोई प्रश्न ही नहीं उठता। प्रधान शिलाभिलेखों के तेरहवें प्रज्ञापन में गांधारों के स्थान में नामक और नाभपंक्ति दिए गए हैं। ये लोग या तो गांधारों के पड़ोसी थे और या उन्हीं के उपविभाग थे । नाभपंक्ति भी अग्रश्रेणियों तथा यौधेयत्रय अथवा शालकायन- त्रय की ही भॉति थे; अर्थात् इन्हें भी नामों का संघात ही समझना चाहिए। अशोक के शिलालेखों में से एक में वे नाभितिन भी कहे गए हैं जिसका अर्थ नाभनय अथवा तीन नाभ भी हो सकता है। अभी तक इस बात का पता नहीं लगा है कि ये नामक लोग कौन थे। पाणिनि (४.१.११२.) के गणपाठ में हमें यह शब्द नामक रूप में मिलता है। ४.१.११२ के पहले जो सुत्र है, उसमें यह बतलाया गया है कि गण राज्यों के नामों के आधार पर उनके निवासियों आदि के सूचक नाम किस प्रकार वनाने चाहिए; और उसके बाद यह बतलाया गया है कि नदियों के नामों के आधार पर उनके तटवर्ती निवासियों के सूचक नाम किस प्रकार बनाए जाने चाहिएँ। पाणिनि के गणपाठ ४.१.११२. में शिवादि (शिव आदि) शीर्षक के अंतर्गत कुछ नाम गिनाए गए हैं। वे सब नाम गोत्र-प्रवर्तक ऋषियों (जैसे ककुत्स्थ, कोहड आदि), राजवंशों (जैसे हैहय), ने उन्हें वसातियों और शिवियों के संग रखा है, जिन्हें हम जानते है कि प्रजातंत्री थे।