पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२७६

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(२४५) थे, बल्कि क्षत्रपों और कुशनों के बाद भी बच रहे थे। उन्होंने जो सिक्के चलाए थे, उनसे भी और शिलालेखों में आए हुए उनके संबंध में उनके विपरीत भाववाले यौधेय उल्लेखों से भी, यह बात प्रमाणित होती है कि उनका अस्तित्व बहुत दिनों तक बना रहा। ईसवी दूसरी शताब्दी भर में सारा देश उनकी वीरता तथा सैनिक बल से आक्रांत था । ईसवी दूसरी शताब्दो मे रुद्रदामन ने उनके संबंध मे लिखा है-"सभी क्षत्रियों के सामने अपना यौधेय (युद्ध करनेवाला) नाम चरितार्थ करने के कारण जिन्हें अभिमान हो गया था" और "जो परास्त नहीं किए जा सकते थे। समुद्रगुप्त के शिलालेख मे इनका उल्लेख उन राज्यों के वर्ग में हुआ है जो गुप्त साम्राज्य ( ईसवी चौथी शताब्दी) की सीमा निर्धारित करते हैं। भरतपुर राज्य में यौधेयों का एक अद्वितीय शिलालेख मिला है जो एक अलंकृत लिपि में लिखा हुआ है और जिसमे यौधेय गण के निर्वाचित प्रधान का उल्लेख है ( 'जो प्रधान बनाया गया था' फ्लीट)। यह शिलालेख गुप्त काल का माना जाता है।

सर्पक्षत्राविष्कृत वीरशब्दजातोरसेकाभिधेयानां यौधेयानाम् ।

Epigraphia Indica 5. To 88. फ्लिीट कृत Gupta Inscriptions पृ०८. नेपालकत पुरा- दिप्रत्यन्तनृपतिभिमालवा नायन-यौधेयमादक.........! + फ्लीट कृत Gupta. Inscriptions, पृ० २५१. वह महाराज, महासेनापति की उपाधि धारण करता था।