पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२७७

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उनके सिक्के, जो शुंग काल से लेकर ईसवी चौथी शताब्दी तक के हैं, पूर्वी पंजाव मे सतलज और यमुना के बीच के समस्त प्रदेश में पाए जाते हैं। दिल्ली और करनाल के बीच के सोनपत नामक स्थान में उन सिक्कों के दो बड़े बड़े संग्रह पाए गए हैं। जान पड़ता है कि ईसवी दूसरी शताब्दी से पहले ही वे लोग अपने स्थान से हटकर पश्चिमी राजपूताने की ओर चले गए थे; क्योंकि वहीं पर रुद्रदामन के साथ उनका मुकावला हुआ था, और मरु देश रुद्रदामन् के राज्य के अन्तर्गत था। प्रकट यह होता है कि यौधेयों का राज्य बहुत विस्तृत था। साथ ही यह भी जान पड़ता है कि उन्होंने अपना मूल स्थान प्रारंभिक कुशन काल में छोड़ा होगा। ११४३. यौधेय लोग अपने एक प्रकार (शुंग काल) के सिक्कों पर एक चलते हुए हाथी और एक सांड़ की मूर्ति अंकित करते थे। वे सब सिक्के यौधेयों के नाम से अंकित हैं-उन पर 'यौधेयानाम् ( यौधेयों का) अंकित है। दूसरे प्रकार के सिक्कों पर उन्होंने कार्तिकेय की, जो वीरता तथा युद्ध के अधिष्ठाता देवता हैं, मूर्ति अंकित की है और उसके नीचे उनका नाम दिया है। वास्तव में स्वयं यह सिक्का ही युद्ध के अधिष्ठाता देवता को समर्पित किया गया है। दूसरे शब्दों में यही मूर्ति भगवती स्वामिन ब्राह्मण्यदेवस्य । वि. स्मिथ कृत Catalogue of Coins I.M. खंड १. पृ० १८१.