पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२७८

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(२४७ ) उनकी स्वतंत्रता की मूर्ति है। उनके तीसरे प्रकार के सिके शुद्ध राष्ट्रीय हैं और राजकीय दृष्टि से बनाए गए हैं। वे यौधेय गण या यौधेय पार्लिमेट या यौधेय प्रजातंत्र के नाम के हैं। उन पर 'यौधेय-गणस्य जया (यौधेय गण की जय) अंकित है। उन पर एक योद्धा की मूर्ति अंकित है जो हाथ मे भाला लिए है और शान से त्रिभंग भाव से खड़ा हुआ है। यही मानो उनके नागरिक योद्धा की मूर्ति है। कुछ सिकों पर द्वि (दो) और कुछ सिकों पर त्रि ( तीन ) अंकित है । संभवतः इससे पतंजलि के त्रिक शालकायनों की भाँति उनके तीन विभाग सूचित होते हैं। ६ १४४. यौधेयों के शिलालेख से प्रमाणित होता है कि उन लोगों में निर्वाचित सभापति या प्रधान हुआ करता था। उसने एक आज्ञा प्रचलित की थी जिसमें शिलालेखो के अनुः उसने अपने आपको “यौधेयों के गण का सार यौधेयों की शासन- बनाया हुआ प्रधान" कहा है। यह प्रणाली स्पष्ट नहीं हुआ है कि होशियारपुर जिले में जो लेख आदि पाए गए हैं, वे राजकीय मोहरों या सिक्कों कनिंघम कृत Coins of Ancient India पृ. ७५-७६. कनिंघम A. S. R. खंड १४. पृ० १४१-४२ पतंजलि का महाभाष्य ५. १.५८ । विजयगढ़ का शिलालेख (फ्लीट कृत Gupta Inscription पृ० २५२)-