पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२७९

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( २४८) की छाप हैं अथवा और कुछ। अवश्य ही सिक्के और मोहर पर वही संघवाले लक्षण अंकित होने चाहिएँ । राजकीय अथवा शासन की दृष्टि से इन लेखों का महत्व बहुत अधिक है। वे यौधेयों तथा उनके मंत्रिमंडल या कार्यकारिणी समिति के नाम के हैं। इन्हें वे मंत्रधर कहते थे अर्थात् जिनके हाथ में राज्य की नीति हो। ( यौधेयानां जय मंत्रधराणाम् ।) ६ १४५, सातवीं शताब्दी से कुछ पहले ही इतिहास में यौधेयों का अंत हो जाता है-कहीं पता नहीं चलता; क्योंकि वराहमिहिर ने उनका केवल परंपरागत उनका अंत भौगोलिक वृत्तांत दिया है और उन्हें गंधारों के साथ रखा है। उस समय उसके सामने कोई प्रत्यक्ष और सजीव प्रमाण या आधार नहीं था। सतलज नदी के तट पर बहावलपुर रियासत की सीमा पर जो जोहिया राजपूत पाए जाते हैं, वे ही इन प्राचीन यौधेयों के आधुनिक सिद्धम् । यौधेय-गण-पुरस्कृतस्य महाराज-महासेनापतेः ..ब्राह्मणपुरोग चाधिष्ठानं शरीरादिकुशल पृष्ट्वा लिखत्यस्तिरमा अर्थात्-"लिद्धि हो । महाराज महासेनापति की जो प्रमुख (नेता) बनाए गए है यौधेय के द्वारा...... ..............1 "(वह) ब्राह्मण सरदार तथा अधिष्ठान के शारीरिक कुशल की कामना करता था तिख्ता-है 'वहीं पर......

  • एशियाटिक सोसाइटी श्राफ बंगाल का कार्यविवरण, १८८४.

पृ. १३८-४०. ....." गण