पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८०

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( २४६) प्रतिनिधि और वंशज माने जाते हैं। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से भी और प्रादेशिक या सीमा की दृष्टि से भी यह बात बहुत ठीक जान पड़ती है। ६१४६. पहले मद्र लोगों को राजधानी शाकल में थी और उन्होंने शाकल के आसपास के प्रदेश का नाम अपने नाम पर मद्र रखा था। परंतु पीछे से मद्र ये लोग भी नीचे की ओर उतर आए थे और यौधेयों के पड़ोसी हो गए थे। ये लोग भी समुद्रगुप्त के साथ लड़े थे। इससे आगे का उनका और कोई इतिहास नही मिलता। ये भी अपने मित्रों की भॉति अदृश्य हो जाते हैं। जान पड़ता है कि मद्र लोग पुरानी लकीर के फकीर ही थे और उन्होंने हस्ताक्षर-युक्त सिक्के प्रचलित करने का नया ढंग नही ग्रहण किया था। वे अपने सिक्कों के लिये पुराने अंक- चिह्नों का ही उपयोग करते थे। उनका एक भी ऐसा सिक्का नही मिलता जिस पर किसी प्रकार का लेख अंकित हो । ६ १४७. शुंग काल में मालव और क्षुद्रक फिर प्रकट हो आते हैं। पतंजलि तो उनसे परिचित है और उसने तुद्रकों की कुछ ऐसी विजयों का उल्लेख किया मालव और तुद्रक है जो उन्होंने स्वयं प्राप्त की थीं। पर उसके बाद की शताब्दियों में उनका कहाँ पता नहीं ... कनिंघम, A. S R. खंड १४ पृ० १४०. पितजति का महाभाष्य ५ ३.५२ ।