पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८२

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( २५१) कृतयुग का आरंभ माना था। उनके गण ने भविष्य में काल का ज्ञान या गणना करने के लिये (कालज्ञानाय ) वही तिथि ग्रहण की थी। उनके व्यवहार के कारण ही वह संवत् "प्रामाणिक और सर्वसम्मत हो गया" था । विक्रम (बल या वीरता) का संवत् अभी तक प्रचलित है और हम लोग आज तक उसका व्यवहार करते हैं। इसके बाद मालव लोगों ने नागर के दक्षिण का विस्तृत भूभाग अपने अधिकार में कर लिया; और अब उस प्रदेश का नाम उन्हीं के नाम पर स्थायी रूप से ( मालव या मालवा ) पड़ गया है। यौधेय, मद्र, आर्जुनायन प्रादि प्रजातंत्रो के साथ मालवों का नाम भी समुद्र- गुप्त के विरोधियों की सूची मे दिया हुआ है। फिर गुप्त काल में उनका कहीं पता नहीं चलता। चौथी से छठी शताब्दी तक मालव के बड़े बड़े राजा उन्हीं के संवत् का व्यवहार करते थे। यदि मालव गण उस समय तक अवस्थित होते, तो यह बात कदापि न होती; क्योंकि इससे यह सूचित होता कि उस संवत् का व्यवहार करनेवाले राजा लोग मालव गण के अधीन हैं | अवश्य ही वराहमिहिर के समय में, जिसने उन्हें

  • देखो Gupta Inscriptions में कृत के संबंध का उल्लेख

जिनकी तिथियाँ मालव संवत् में ही है। + फ्लीट कृत Gupta Inscriptions, पृ० १५४. $ Ep Indica. खंड १६. पृ० ३२०. (श्रीमालव- गणाम्नाते प्रशस्ते कृत-संज्ञके )