पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८३

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(२५२) (पुरानी सामग्री के आधार पर) हिमालय के पास के निवासी वतलाया है, उन लोगों का अस्तित्व नहीं रह गया था। वराह- मिहिर वय मालव में रहता था। ऐसी दशा में जब उसने इतनी अधिक पुरानी बात का उल्लेख किया है, तो उससे यही सूचित होता है कि असल मालवों का कई शताब्दी पहले से ही अस्तित्व नहीं रह गया था। विष्णुपुराण में उनका वाद का ही निवासस्थान (मेवाड़-जयपुर) दिया हुआ है और वह बहुत ठीक है। 8 १४६ मालवों के सिकों पर ब्राह्मी लिपि के लेख हैं। उन पर ब्राह्मो में मालवानाम् जय, मालवजय, मालवह्न जय (प्राकृत में) और मालवगणस्य लिखा मिलता है। मालव नाम का अवशिष्ट अब तक उस प्रांत के निवासी ब्राह्मणों में मिलता है जो मालवी कहलाते हैं। अब इस शब्द को संस्कृत रूप दे दिया गया है और यह मालवीय बना लिया गया है। ये मालवी ब्राह्मण गौर वर्ण के और सुंदर होते हैं, विशेष रूप से बुद्धिमान होते हैं और इनमें व्यापार-बुद्धि अधिक देखने में आती है। ये अपनी जाति या समाज के बाहर किसी के साथ विवाह-संबंध स्थापित नहीं करते। ये लोग बढ़ते बढ़ते इलाहाबाद तक आकर बस गए हैं और अब प्रायः वहीं तथा उसके आसपास पाए जाते हैं।

. विष्णुपुराण W. and H. २. १३३.

tC.CI. M. पृ० १७०-४.