पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८५

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(२५४) इस वर्ग में इनकी जो गणना हुई है, वह पतंजलि के समय के बाद की नहीं है, क्योंकि ई० पू० सन् १०० में ये लोग राजन्यों से बहुत दूर और राजपूताने मे रहते थे। वहाँ वे यौधेयों तथा और लोगों के साथ मिलते हैं और बराबर समुद्रगुप्त के समय तक उनका उल्लेख पाया जाता है। इससे पता चलता है कि प्रार्जुनायनों का राजनीतिक समाज बहुत बाद में और संभवतः शुंग काल (ई० पू० २००) में स्थापित हुआ था; और जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, इसका संस्था- पक आर्जुनायन था। इनके सिक्कों पर केवल ब्राह्मी लिपि पाई जाती है, जिससे यह सूचित होता है कि ई० पू० १०० में उत्तरवालों के साथ इनका कोई संबंध नहीं था। इनके सिक्कों पर 'प्रार्जुनायन' या 'प्रार्जुनायन जय' लिखा रहता है। राजपूताने में इनके साथी और मित्र वीर यौधेय, मद्रक और मालव लोग थे जिनके साथ चलकर ये वहाँ गए थे। 8 १५२. इन लोगों का उर्वर पंजाब प्रदेश से चलकर राजपूताने की मरुभूमि मे जाना इनके स्वातंत्र्य-प्रेम का प्रमाण प्रजातंत्रों के स्थान- है; और जैसा कि सिकंदर के समय में परिवर्तन का अभिप्राय इनमें से एक ने कहा था, ये अजेय प्रजातंत्र अन्यान्य प्रजातंत्रों की अपेक्षा अधिक स्वातंत्र्य-प्रेमी

  • विन्सेन्ट स्मिथ कृत 0. C. I. M. भाग १. पृ० १६६. रैप्सन

I.C. प्लेट ३.२०.