पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८६

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(२५५ ) थे। उनका विश्वास यह था कि यौधेय और मालव- गण जहाँ रहेंगे और जहाँ प्राचीन काल की भॉति स्वतंत्रता- पूर्वक रहेंगे, वही यौधेय या मालव देश भी होगा। वे अपनी राजनीतिक सत्ता तथा आत्मा का अस्तित्व बनाए रखने के लिये अपने पूर्वजों का निवासस्थान तथा देश तक छोड़ देते थे। वे मरु प्रदेश तक में चले जाते थे, पर रहते सदा प्रजा- तंत्री या पार्लिमेंट के शासन में थे। हिंदू राजनीति का यह एक निश्चित सिद्धांत है कि निवासस्थान की अपेक्षा स्वतंत्रता का महत्व कहीं अधिक है और निवासस्थान छोड़कर भी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए । जान पड़ता है कि प्रजातंत्रों ने ठीक ठीक इसी सिद्धांत के अनुसार काम किया था । 8 १५३. सिकों तथा शिलालेखों आदि से इन प्रजातंत्रो के अपने स्थान से हटकर राजपूताने जाने का जो प्रमाण मिलता है, उसके अतिरिक्त एक और प्रमाण महा- महाभारत में राज- भारत का भी है। सभापर्व (अध्याय ३२) पूताने के प्रजातन में मालव, शिवि और त्रिगत लोग राज- पूताने में बतलाए गए हैं; पर एक दूसरे स्थान (अध्याय ५२) में वे पंजाब में कहे गए हैं। जान पड़ता है कि ५२ वें अध्याय में राजसूय के विवरण मे जो कुछ कहा गया है, वह ज्यादा पहले

- मैक्डिल कृत Alexander पृ० १५४ "मालवों ने अपने

संबंध में कहा था-हम लोगो को औरों की अपेक्षा स्वतंत्रता तथा स्वशासन बहुत अधिक प्रिय है।"