पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८७

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3 ( २५६) की बातों के आधार पर है। वहाँ शिबियों, त्रिगतों, यौधेयों, राजन्यों और मद्रों का उल्लेख काश्मीर और केकय देश के लोगों के साथ हुआ है। और उसी वर्ग में अंबष्ठ लोग क्षुद्रकों और मालवों के साथ रखे गए हैं। ३२ वें अध्याय मे, (जिसमें दिग्विजय का वर्णन है ) शिबि, त्रिगर्त और मालव लोग दशाओं और माध्यमकयों के साथ रखे गए हैं। माध्यमकेय लोग उदयपुर राज्य के नगरी नामक स्थान के समीप की सध्यमिका नगरी के रहनेवाले थे, जहाँ माध्यमकेय सिक्के बहुत अधिक संख्या में पाए गए हैं। जान पड़ता है कि उस समय तक मध्यामिका नगरी पर शिबियों का अधिकार नहीं हुआ था और वहाँ एक अलग राजनीतिक समाज या वर्ग के लोग रहा करते थे। इसके आगे के मार्ग का जो वर्णन है, उसमें सरस्वती नदी और मत्स्य देश (अलवर) का उल्लेख है। इससे यह सिद्ध होता है कि ये सब गण राजपूताने में सिंध और विध्य के बीच में थे। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि शिबियों, त्रिगों और अंबष्ठों का तो राजपूताने मे मालवों के साथ उल्लेख मिलता है, पर क्षुद्रकों का उल्लेख नहीं मिलता। 8 १५४. इसके अतिरिक्त ३०वे अध्याय के आठवें श्लोक मे मालवों का उल्लेख मत्स्यों के साथ हुआ है। महाभारत में बाद के जो उल्लेख आदि हैं, जान पड़ता है कि, वे ई० पू० लगभग १५० की राजनीतिक घटनाओं से संबंध रखते हैं। पर प्रारंभिक काल के जो उल्लेख आदि हैं, वे कौटिल्य के समय के या ,