पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२८९

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(२५८) खरपरिकों को भी उसी वर्ग में, एकराज-रहित समाजों के वर्ग में, रखा है। संभवत: ये खरपरिक या खरपर लोग महा- भारत में आए हुए पंचकर्पट ही हैं। उत्सवसंकेतों में भी प्रजातंत्र शासन-प्रणाली थी और संभवतः उनका नामकरण उत्सव और संकेत नाम के दो व्यक्तियो के नाम पर पड़ा था। यहाँ हम यह भी बतला देना चाहते हैं कि “संकेत" शब्द किसी प्रजातंत्र द्वारा स्वीकृत किए हुए किसी निश्चय या नियम आदि का सूचक एक पारिभाषिक शब्द भी है ( संकेत: समयक्रिया)। और यह बात बहुत संभव है कि यहाँ संकेत शब्द आरंभ में उत्सवों के स्वीकृत किए हुए किसी प्रस्ताव या निश्चय के आधार पर स्थापित राज्य का सुचक हो। महा- भारत में उत्सवसंकेतों का स्थान पुष्कर या अजमेर के पास उल्लेख है, उनके नाम इस प्रकार हैं-१ प्रार्जुन, २ काक, ३ आभीर, १ खरपरिक और सनकानीक । कौटिल्य ने जहाँ किसी राज्य को बदनाम करनेवाले को (जनपदोपवादाः ३ १८.) दंड देने का उल्लेख किया है, वहाँ उदाहरण स्वरूप गांधार के साथ प्राज्जूणक भी दिया है। ये वही नं०१ वाले प्रार्जुन जान पड़ते हैं। शिलालेखों के अनुसार नं०३ वाले भाभीर लोग एकराज के अधीन थे। पर जान पड़ता है कि जब उनका बल नष्ट कर दिया गया, तब उन्होंने अपने पड़ोसियों की शासन- प्रणाली ग्रहण कर ली थी। चौथे खरपरिकों का नाम राय वहादुर बा. हीरालाल को बाद के एक शिलालेख में मिला है। पांचवें सनकानीको के संबंध में अभी तक और कुछ मालूम नहीं हुआ है। पंचखरपरिकों के संबंध में देखो नीचे ६१६२ - वीरमित्रोदय पृ० ४२४.