पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२९०

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( २५६) बतलाया गया है। जान पड़ता है कि ये लोग गुप्त काल तक नहीं रह गए थे; क्योंकि उस समय के उनके अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल यही बात नहीं है कि गुप्त काल के लेखों आदि मे उनका कोई उल्लेख न हो, बल्कि गुप्त काल के कवि कालिदास ने उनका उल्लेख हिमालय में रहनेवाले एक अर्ध-पौराणिक लोगों की भॉति किया है। इससे प्रकट होता है कि उत्सवसंकेतों का बहुत पहले से अस्तित्व नहीं रह गया था। उसी पद में महाभारत में यह भी कहा गया है- "सिंधु-तट के रहनेवाले महाबली ग्रामणी"* । जान पड़ता है कि ये सिंधु-तट के वही नगर प्रजातंत्र थे जो सिकंदर के समय में वर्तमान थे 8 १५५. अपने इन नए निवासस्थानों में भी ये प्रजातंत्र बहुत बलवान् थे और इनका अस्तित्व बहुत समय तक था, जिससे सुचित होता है कि ई० पू० १५० से ई० पू० ३५० तक भी हिंदू प्रजातंत्र नीति का बहुत अच्छा प्रचार था। यह राजपूताने के प्रजातंत्रों के उदय या उत्थान का समय था। पर साथ ही यह भी वही समय था जिसमे पंजाब और पश्चिमी भारत के प्रजातंत्रो का पतन और अंत हो रहा था। पार्थिया और सीस्तान के शको ने, जो इन प्रदेशों मे बराबर बढ़ते हुए चले गए थे, इन लोगों की स्वतंत्रता नष्ट कर दी थी और इनके राज्यो का अंत कर दिया था। देखो ऊपर। सिन्धुकूलाश्रिता ये च ग्रामणीया सहाबलाः । ...