पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२९१

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(२६० ) 8 १५६. अर्थशास्त्र में जिन कुकुरों का उल्लेख है, वे कुकुर रुद्रदामन के राज्य में मिलकर नष्ट हो गए थे। ई० पू० १५० के बाद वे अपना नाम उसी देश के नाम के रूप में छोड़ गए थे जिसमें वे पहले रहते थे। पितिनिक लोग संभवतः मौर्य काल में नष्ट हुए थे और वे अपने पश्चात् अपना कोई चिह्न नहीं छोड़ गए। सुराष्ट्र लोग भी ईसवी दूसरी शताब्दी के लगभग साधा- रण मानव समाज में मिल गए थे; उनका कोई स्वतंत्र और पृथक अस्तित्व नहीं रह गया था। ६ १५७. प्राचीन काल मे जो वृष्णि इतने कीर्तिशाली थे, वे भी शक बर्बरो के द्वारा नष्ट हो गए और संसार को अपनी कथा सुनाने के लिये केवल थोड़े से वृष्णि सिक्के छोड़ गए। पुराना ब्राह्मी और प्रजा- तंत्री लेख 'वृष्णि-राजन्य-गणस्य त्रातस्य' (वृष्णि राजन्य (और) गय के देश का त्राता या रक्षक) अब तक बचा हुआ है। पर साथ ही उन सिक्कों को विवश होकर आक्रमणकारियों की लिपि खरोष्ठी भी ग्रहण करनी पड़ी है। इस सिक्के पर राजचिह्न या लक्षण के रूप में एक चक्र अंकित है, जो पुरानी कथाओं के अनुसार राजन्य कृष्ण के समय से उनका चिह्न चला आता था। यह लेख ई० पू० १०० की लिपि में है ।

- देखो ऊपर 8 ३७ पृ० १६ । कनिंघम ने Coins of An-

cient India पृ० ७०. प्लेट ४. १५. मे इस चक्र को भूल से रथ का • .