पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२६१) $ १५८, मौर्य शासन की प्रजातंत्रों को नष्ट करनेवाली नीति के परिणाम स्वरूप देश बहुत ही दुर्बल हो गया था; और इसी लिये ई० पू० पहली शताब्दी में विदेशी बर्बरों के लिये पश्चिमी भारत में आने का मार्ग सुगम हो गया था। वे सिध से महाराष्ट्र प्रदेश तक बहुत आसानी से रह सकते थे। कोई ऐसा बलवान नहीं रह गया था जो उनका मुकाबला कर सकता। पर और और दिशाओं में ठीक यही बात नहीं थी। ये बर्बर लोग मथुरा तक तो बढ़ते चले गए थे, पर उसके बाद पश्चिम और दक्षिण दोनों दिशाओं में वे पुराने प्रजातंत्रो के द्वारा रोके गए थे। मथुरा और उज्जैन में तो विदेशियों ने अपने पैर जमा लिए थे, पर बीच का प्रदेश उनके हाथ नहीं लग सका था। ६ १५६. जब स्वतंत्र होने के कारण कोई बहुत बलवान् हो जाता है, तब प्रकृति उससे उसके बल का मूल्य ले लेती है; और यह मूल्य किसी न किसी दंड के रूप में होता है। पंजाब के पुराने प्रजातंत्रों को भी यह मूल्य चुकाना पड़ा था। मायाँ के शासन काल मे पंजाब के छोटे छोटे प्रजातंत्र नाम मात्र के लिये ही रह गए थे। उनका वास्तविक बल तो नष्ट हो गया था, केवल राजनीतिक नाम बच रहा था। उनके संघ नहीं रह गए थे, केवल गण ही गण थे । वे अपना शासन तो आप चक्र या पहिया समझ लिया है, पर उसके किनारे पर के तेज दाँत और उनके संयोजक अंग स्पष्ट दिखाई देते हैं।