पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २६३) हुई हैं। इसी से मालूम हो जाता है कि अंत में उनकी क्या दशा हुई; अर्थात् अंत में उन्होंने मथुरा की क्षत्रपी में मिलकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट कर दिया था। उनके सिक्के होशियार- पुर जिले और मथुरा में पाए जाते हैं। जान पड़ता है कि आरंभ मे उनका निवासस्थान होशियारपुर जिले मे ही था। इन लोगों की शासन-प्रणाली के जनपद शब्द पर पहुत जोर दिया जाता था, जिससे यह सिद्ध होता है कि इनमें समस्त जनपद ही राजा या शासक माना जाता था। यहाँ यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि राजन्यों के संबंध में पाणिनि का जो सूत्र है, उसमें भी राजन्य जनपद का ही उल्लेख है। अतः इससे सिद्ध है कि राजन्यों का भी प्रजातंत्र ही था। 8 १६१. एक और पुराना राज्य महाराज-जनपद था, पर उसकी भी वही दशा हुई जो राजन्य जनपद की हुई थी पहले उनके सिक्कों पर ब्राह्मी लिपि मे महाराज जनपद 'महाराज जनपदस'(महाराज जनपद का) लिखा रहता था; पर बाद में जब उन लोगों पर विदेशी शासकों का प्रभाव पड़ा और वे उनके अधिकार में चले गए, तब उस ब्राह्मी लिपि का स्थान खरोष्ठी ने ले लिया । 1 देखो कनिंघम कृत 0. A. I. पृ० ६६, जिसमे उन्होंने इन सिक्कों को भूल से औदुबर सिक्कों के वर्ग में रख दिया है। कनिंघम ने प्रिंसेप के जिस प्लेट का उल्लेख किया है, वह भी देखना और मिलाना चाहिए।