पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२९६

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(२६५ ) समर्थन गण-पाठ से भी होता है, जिसमे ये लोग राजन्यों और औदुबरों के साथ रखे गए हैं। इन लोगों में शस्त्रोपजीवी शासन-प्रणाली प्रचलित थी। पतंजलि से महत्व की एक यह बात मालूम होती है कि शालं- कायनों मे तीन विभाग थे। इस प्रमाण से हमे यौधेयों के सिक्कों के संबंध में एक बात समझने मे सहायता मिलती है। यह कहना ठीक नहीं है कि शालकायनों में तीन जातियाँ मिली हुई थीं। जैसा कि इस राज्य के नाम से सूचित होता है, इसकी स्थापना करनेवाला कोई एक शालंकायन था अर्थात् शालंक का अपत्य या बंशज था; और यह शालंक नाम भी किसी बहुत प्राचीन गोत्र या वंश का नाम नही है। शालकायन संघ के जो तीन सदस्य थे, वे संभवत: तीन छोटे छोटे राज्य थे। ६ १६३. वामरथों का अभी तक कोई इतिहास नही मिला है। पतंजलि के अनुसार यह प्रजातंत्र अपने विद्वाने के पांडित्य के लिये प्रसिद्ध था। इस दृष्टि से ये लोग कठों के समान थे। परंतु इस बात का कोई पता नहीं चलता कि ये लोग कठों के समान ही वीर और योद्धा भी होते थे। यह भी पता नहीं चलता कि इनका स्थान कौन सा था। इन नए जन्म लेनेवाले और जल्दी ही समाप्त हो जानेवाले प्रजातंत्रों के वर्ग मे कुछ ऐसे बिना नामवाले राज्य भी आ सकते हैं, जिनमे राजन्य शासन-प्रणालो प्रचलित थी और जिनके सिक्के केवल उनके राजन्यों (प्रधानों या सभापतियों) के नाम से अंकित होते