पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२९७

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(२६६) थे। उदाहरणार्थ 'राजन्य-महमितस' अर्थात् राजन्य महामित्र का। इस प्रकार के सिक्कों पर के लेख खरोष्ठी और ब्राझो दोनों लिपियों में हैं और ये सिक्के पहाड़ियों में पाए जाते हैं। 8 १६४. प्रारंभिक पाणिनि-काल के साहित्य में औदुंबरों का कही पता नहीं चलता। परंतु गण-पाठ में ये लोग गणों के राजन्य-वर्ग में उल्लिखित हैं।। महा- औदुंबर भारत के सभापर्व (अध्याय ५२) में पंजाब के गणों या प्रजातंत्रों की जो पहलेवाली सूची दी हुई है, उसमे इनका नाम सब से पहले आया है। संभवतः इन लोगों में भी प्रजातंत्र या गण शासन-प्रणाली ही प्रचलित थी। इन लोगों के ई० पू० पहली शताब्दी के सिक्के उत्तरी पंजाब में पाए जाते हैं और उन पर खरोष्ठी तथा ब्राझो दोनों लिपियों के लेख मिलते हैं। वराहमिहिर ने इन्हें कपिस्थलों के साथ रखा है, जो पतंजलि में कठों के साथ एक द्वंद्व में मिलते हैं। इन लोगों का स्थान कॉगड़े और अंबाले के बीच मे कहीं था। जान पड़ता है कि इन लोगों की एक शाखा जाकर कच्छ में भी बस गई थो; क्योंकि प्लिनी ने औदुंबरों (Odomboeres) का स्थान वही बतलाया है। इनके सिक्के भी प्रार्जुनायनों के सिक्कों के ही ढंग के हैं। इन सिक्को से सूचित होता है कि औदुंबरों में (यदि उनमें प्रजातंत्र या गण शासन-प्रणाली प्रचलित

- कनिंघम कृत C. A. I पृ० ६६.

+गण-पाठ ४.२.५३.