पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३००

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(२६६) ईसवी सन ४६ के लगभग हुए थे (और यही काल प्रायः पुराणों की रचना की समाप्ति का भी है), पुष्यमित्र और पतुमित्र थे। पर इनसे पहले के जो शासक था राजा थे, उनका उल्लेख उनके नामों से हुआ है (जैसे राजा विध्यशक्ति, राजा शाक्यमान आदि आदि)। और और पुराणों में तो पुष्यमित्र शब्द अपने बहुवचन रूप मे आया है, परंतु भागवत में राजन्य पुष्यमित्र का (पुष्यमित्रोऽथ राजन्यः) उल्लेख पाया है; अर्थात् उसमे इसके मूल संस्थापक का जिक्र है। विष्णुपुराण की कुछ प्रतियों में कहा गया है कि पुष्यमित्र, अर्थात् प्रधान या राजा, बलवान और विजयी था ( सर्ववर्णेषु बलवान् जयो भविष्यति)। पुष्यमित्रो को कोई राजवंशी रूप नहीं दिया गया है; और इसका स्पष्ट कारण यही है कि ये लोग प्रजातंत्री थे। पुष्यमित्रों का "बल और राजकोश इतना अधिक बढ़ गया था"+ कि उन्होने साम्राज्य पर इतना भारी आक्रमण किया, जिसके कारण साम्राज्य फिर सँभल न सका। कुमारगुप्त

- जायसवाल, जरनल बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी,

खंड ३. पृ० २४७. 1 पुराणो के मूल पाठों के संबंध मे देखो पारजिटर कृत Purana Texts पृ० ५१ और टिप्पणियाँ । + समुदितब ल] कोशान् पुष्यमित्रान्. ......। स्कंदगुप्त का भीतरी नामक स्थान का शिलालेख । फ्लीट कृत Gupta Inscrip- tion पृ०५३-५४.